उम्मीद....
उम्मीद का छाता लिए चल रहा हु इस मुश्किलों की बरसात में
आस पास लोग कम है
बरसात का शोर काफी है
मंजिल का पता नही है
रास्ता बताने वाला भी कोई नही है
अकेले चल रहा हु इस रास्ते पे
ना किसी से मिलने की ख्वाइश है
ना कही डेरा डालने के लिए वक्त।
एक समय था जब वक्त ही वक्त था
और आज वक्त ऐसे बीत रहा है जैसे प्थजड में पत्ते
कभी खुशियों की कोई गिनती नहीं थी
और आज बस कुछ गीनी चुनी खुशियां बची है
निराशा के बादल मुझे घेर रहे है
मुश्किलों की बरसात हो रही है
लेकिन उम्मीद का छाता लिए चल रहा हु इस मुश्किलों की बरसात में।
-आपसे फिर मिलूंगा मेरे अगले ब्लॉग में।
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