ज़माना क्या कहेगा ?

"ज़माना क्या कहेगा" इस एक वाक्य ने कितनों को सफल होने से रोक दिया, कितनों के सपने तोड़ दिए और इसी वाक्य ने कितनों को पहला कदम बड़ाने से ही रोक दिया।

हमे बचपन से ही सिखाया जाता है की इस तरीके से खाना है, इस तरीके से उठना बैठना है, पढ़ाई लिखाई कर के एक अच्छी नौकरी में लग जाना है।
अगर इसके बाहर हम कुछ करना चाहे तो "ज़माना क्या कहेगा"

हमने अपने आप को इतना हवाले कर दिया है इस ज़माने के, की सपने में भी अगर हम कुछ आउट ऑफ द बॉक्स करना चाहे तो एक आवाज आती है "ज़माना क्या कहेगा"

हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे है लेकिन आज भी एक बच्चा अपने परिवार को अपने सपने या उसके शौक के बारे में खुल के चर्चा नहीं कर सकता क्योंकि बच्चे को भी अच्छी तरह से पता है कि अगर मैंने अपने शौक या सपने बताए तो सामने से यही जवाब आयेगा "ज़माना क्या कहेगा"

बेटी की शादी में खाना अच्छा नही बने तो "ज़माना क्या कहेगा"
परीक्षा में नंबर कम आय या फेल होगए तो "ज़माना क्या कहेगा"
असल में देखा जाय तो हम इस ज़माने के चक्रवियू में कुछ इस कदर फस चुके है जहां से निकलना मुस्किल है लेकिन नामुंकिन नही।

आज से ही और अभी से ही इस चक्रवीयू से बाहर निकलने की कोशिश में लगिए वरना कोई और आके आपसे यह न कह दे की "ज़माना क्या कहेगा"

-आपसे फिर मिलूंगा मेरे अगले ब्लॉग में।

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